देहरादून। साल 2005 से पहाड़ों की रानी मसूरी में चल रही प्राइवेट फॉरेस्ट एस्टेट के सर्वेक्षण की कवायद को एक बार फिर जोर का झटका लगा है। सर्वे ऑफ इंडिया ने हाल ही में 115 एस्टेट के जो नक्शे मसूरी वन प्रभाग के सुपुर्द किए थे, उसे प्रभागीय वनाधिकारी ने बैरंग लौटा दिया है। वन विभाग की ओर से नक्शों पर कई तरह की आपत्तियां लगाई गई हैं। मसूरी में 2959.15 हेक्टेयर (18 हजार बीघा से अधिक) में फैले 218 प्राइवेट फॉरेस्ट एस्टेट के सर्वे का काम वर्ष 2005 से चल रहा है। सर्वे ऑफ इंडिया को नोटिफाइड प्राइवेट फॉरेस्ट की सीमा को स्पष्ट करना है। ताकि इस भूभाग को संरक्षित कर, शेष भाग पर एमडीडीए बिना किसी अड़चन के साथ नक्शे पास कर सके। समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से दिए गए निर्देश के क्रम में यह काम किया जा रहा है। लंबी चैड़ी कवायद के बाद सर्वे ऑफ इंडिया ने 176 एस्टेट का सर्वे पूरा कर लिया है। इसमें से 128 एस्टेट के नक्शे तैयार कर 115 नक्शे मसूरी वन प्रभाग को सुपुर्द किए गए थे। ताकि इनकी स्वीकृति के बाद सीमा पर पिलर लगाने का काम पूरा किया जा सके।
प्रभागीय वनाधिकारी मसूरी कहकशां नसीम ने यह कहते हुए नक्शे वापस कर दिए कि इनमें सिर्फ सीमा को स्पष्ट किया गया है। नोटिफाइड फॉरेस्ट में नदी-नाले, खाली और पेड़युक्त भूमि या अन्य तरह के निर्माण (यदि हैं तो) और विशेष संरचनाओं को नहीं दर्शाया गया है। लिहाजा, नक्शों में इस तरह की स्थिति स्पष्ट कर दिए जाने के बाद नक्शे प्राप्त किए जा सकेंगे।
29 सौ से अधिक हेक्टेयर क्षेत्रफल के ये एस्टेट सरकारी नहीं, बल्कि निजी संपत्ति है। विभिन्न लोगों के नाम पर यह भूमि दर्ज है। वर्ष 1950 में जब जमींदार विनाश एवं भूमि व्यवस्था कानून लागू किया गया, तब एक व्यक्ति को सिर्फ 12.5 एकड़ भूमि रखने का हक दिया गया। शेष भूमि सरकार में निहित कर दी गई। सिर्फ जिस भूमि में वन, हरियाली, शिक्षण संस्थान आदि थे, उन्हीं में छूट दी गई। इस तरह मसूरी में 218 एस्टेट की भूमि निजी लोगों के मालिकाना हक में छोड़ दी गई।