यादों के झरोखों से: मदर इंडिया

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जब किसी बाहरी व्यक्ति को हिन्दी सिनेमा से परिचित कराया जा रहा हो तो उसे जिन फिल्मों को देखने की सलाह दी जाती है, उनमें मदर इंडिया (1957) अग्रणी है। कहा जाता है कि अगर आपने मदर इंडिया नहीं देखी तो हिन्दी फिल्में नहीं देखीं।
आज पुरानी फिल्मों के रीमेक बनाने की होड़ लगी हुई है और ये रीमेक पुरानी फिल्मों के आसपास भी नहीं फटक पाते। सच पूछा जाए तो भारतीय सिनेमा में संभवतः एक ही महान रीमेक बनी है और वह है मेहबूब खान की मदर इंडिया। यह मेहबूब की ही 1940 में आई फिल्म औरत की रीमेक थी। आज यदि किसी हिन्दी रीमेक को महान की संज्ञा दी जा सकती है तो वह मदर इंडिया ही है।
यह दस्तावेज है मनुष्य, खास तौर पर भारतीय ग्रामीण स्त्री की जिजीविषा का। एक कैन्वस है, जिस पर ठेठ हिन्दुस्तानी जीवन की पेंटिंग रची गई है। एक महाकाव्य है, जो समय की सीमाओं से परे हो चुका है।
मदर इंडिया कहानी है राधा (नरगिस) की, जो नवविवाहिता के रूप में गाँव आती है और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ उठाने में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है।
सुखी लाला (कन्हैयालाल) से लिए गए कर्ज के जाल में परिवार मानो हमेशा के लिए फँस चुका है। खेती मौसम के रहमो-करम पर निर्भर है। गरीबी साया बनकर पीछे पड़ी हुई है। ऐसे में दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गँवाने के बाद स्वयं को बोझ मानकर शर्मिंदा पति श्यामू (राज कुमार) भी साथ छोड़ जाता है। अकेली राधा सारी विपरीत परिस्थितियों से लड़ती है। एक बच्चे को गँवाने के बाद दो बेटों को अकेले बड़ा करती है। इस सबके बीच वह अपने मूल्यों, अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करती।
मदर इंडिया में यादगार किरदारों, दृश्यों और गीतों की मानो लंबी श्रृंखला है, लेकिन जो दृश्य इस फिल्म का प्रतीक ही बन गया है, वह है बैल की जगह स्वयं हल खींचकर अपना खेत जोतती राधा उर्फ नरगिस का। फिल्म के पोस्टरों पर भी यही चित्र हावी था। बुरे से बुरे हालात में भी हार न मानने और अपनी तकदीर स्वयं अपने हाथों से लिखने की जिद का प्रतीक है यह दृश्य। पति नहीं है तो क्या मैं तो हूँ, बच्चों के सिर पर पिता का साया नहीं है तो क्या माँ तो है, हालात साथ नहीं हैं तो क्या हौसला तो है…। फिल्म के अन्य किरदारों में राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त थे जिन्होनें नर्गिस के बेटों की भूमिका निभाई थी। सुनील दत्त का गुस्सैल युवक का किरदार काफी मशहूर हुआ था। इस फिल्म में एक घटना हुई थी। खेतो में आग लगी जाती है और नर्गिस उसमंे घिर जाती हैं। शूटिंग के दौरान सुनील दत्त अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाते हैं जिसके बाद दोनो में प्यार हो जाता है और फिल्म की शूटिंग के दौरान ही सुनील दत्त और नर्गिस विवाह कर लेते है। फिल्म के गीत लिखे थे शकील बदायूंनी ने और संगीत था नौशाद का। इस फिल्म ने अपने दौर में खूब शोहरत हासिल की थी।
दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा। जीना है तो इस माटी से अन्ना उगाना ही है। हल खींचने के लिए बैल नहीं है तो क्या खेत को जोता न जाएगा! मैं हूँ, मेरे हाथ हैं, मेरा दमखम है, मेरा हौसला है…। इस हौसले, इस श्रम, इस हार मानने से इंकार को देखकर आखिर पत्थर बनी धरती को भी पसीजना पड़ता है और दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे… का मंजर सामने आता है। आज भी मदर इंडिया के यादगार गीत ‘‘दुनिया में हम आये है तो जीना ही पड़ेगा, होली आयी रे कन्हाई, ना मैं शैतान हूं ना मैं भगवान हूं, ओ मेरे लाल आजा, गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे’’ गीत आज भी लोगों की जुबान पर है।
-मु0 रिज़वान

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