एजेंसी न्यूज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर एक पब्लिक अथॉरिटी है जो कि पारदर्शिता कानून और सूचना अधिकार कानून के दायरे में आता है। सीजेआइ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्घ्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि सभी न्यायमूर्ति भी आरटीआई के दायरे में आएंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सूचना अधिकार कानून की मजबूती के लिहाज से बड़ा कदम माना जा रहा है।
हालांकि शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पारदर्शिता और आरटीआइ के मसलों को निपटाने के दौरान न्यायिक स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखना होगा। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि कोलेजियम द्वारा सुझाए गए जजों के नामों का तो खुलासा किया जा सकता है लेकिन नाम सुझाए जाने के पीछे की वजहों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। संविधान पीठ ने बीते चार अप्रैल को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जजों की नियक्ति की प्रक्रिया के खुलासे से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर पड़ता है। आरटीआई को निगरानी के उपकरण के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एनवी रमना ने अपने फैसले में कहा कि राइट टू प्राइवेसी और राइट टू ट्रांसपिरेसी यानी गोपनीयता और पारदर्शिता के अधिकारों में संतुलन होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका की आजादी की हर हाल में रक्षा होनी चाहिए।